Friday, July 3, 2009

ये उस्ताद अमीर ख़ाँ नहीं;गोस्वामी गोकुलोत्सवजी हैं


उनका स्वर,तान और बोल-बनाव सुनकर यही लगता है कि यह इन्दौर घराने के स्वर सम्राट उस्ताद अमीर ख़ाँ साह्ब की आवाज़ है.लेकिन हुज़ूर ये हैं पद्मश्री गोस्वामी गोकुलोत्सवजी महाराज. इन्दौर में ही बिराजते हैं और पुष्टिमार्गी श्री वल्लभाचार्य सम्प्रदाय के वरिष्ठ आचार्य हैं. संगीत जगत में तो महाराज श्री हमारे लिये इसलिये पूजनीय हैं कि हमें उनकी गायकी में अति-विलम्बित और धीर गंभीर कलेवर का रस मिलता है.वे फ़ारसी,संस्कृत,आयुर्वेद,यूनानी औषधी और सामवेद के अनन्य ज्ञाता हैं.जिस पीठ पर आचार्यश्री विराजित हैं उसी मंदिर में अपनी युवावस्था के दौरान उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब का बहुत आना जाना रहा . आचार्य श्री ने न तो कभी उस्ताद को देखा और न कभी सुना. बस मंदिर में मौजूद अमीर ख़ाँ साहब की एकाधिक ध्वनि मुद्रिकाओं को सुनकर उन्हें लगा कि यही है वह गायकी जो मुझे आत्मसात करना है. वे लाजवाब पखावज वादक रहे हैं और ध्रुपद गायकी के भी जानकार हैं.उन्होंने मधुरपिया उपनाम से कई बंदिशे रचीं हैं.

आज सुरपेटी पर अपने ही शहर के इस विलक्षण साधक को प्रस्तुत कर अनन्य प्रसन्नता हो रही है. मौक़ा भी है और दस्तूर भी.... आसमान में बादल छाए हैं.आइये गोस्वामी गोकुलोत्सवजी के स्वर में सुनें राग मियाँ मल्हार. बंदिश उनकी स्वरचित है.

यह गायकी उस रस का आस्वादन करवाती है जो किसी और लोक से आई लगती है और जब कानों में पड़ती है तो उसके बाद कुछ और सुनने को जी नहीं करता.

Miyamalhar - Gokul...

Wednesday, July 1, 2009

अब कहाँ सुनने को मिलता है ऐसा भरा-पूरा मालकौंस ?


अभी 24 जून को संगीतमार्तण्ड ओंकारनाथ ठाकुर का जन्म दिन था. ग्वालियर घराने की गायकी के इस शीर्षस्थ गायक ने कुछ ऐसे अदभुत करिश्मे रचे जिसकी दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है. गुजरात में जन्में और वाराणसी में महामना पं.मदनमोहन मालवीय के आग्रह पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संगीत के आचार्य पद की गरिमा में इज़ाफ़ा किया. वे तत्कालीन संगीत परिदृष्य के सबसे आकर्षक व्यक्तित्व थे. महान रंगकर्मी पृथ्वीराज कपूर एक बार बी.एच.यू. पधारे तो उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि पं.ओंकारनाथ ठाकुर से जैसा व्यक्तित्व तो रंगकर्म की विधा में होना चाहिये था. पचास और साठ के दशक में पण्डितजी की महफ़िलों का जलवा पूरे देश के मंचों पर छाया रहा. मेरे शहर इन्दौर में भी पण्डितजी की कई यादगार महफ़िलें हुईं.पं.ओंकारनाथ ठाकुर की गायकी में रंजकता का समावेश तो था ही;वे शास्त्र के अलावा भी अपनी गायकी में ऐसे रंग उड़ेलते थे कि एक सामान्य श्रोता भी उनकी कलाकारी का मुरीद हो जाता. उनका गाया वंदेमातरम या मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो सुनने पर एक रूहानी अनुभूति होती है.प्रचार और पी.आर. के इस दौर में नई पीढ़ी के श्रोता पं.ओंकारनाथजी जैसे महार वाग्गेयकार का विस्मरण करती जा रही है जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. मुझे यह कहते कोई झिझक नहीं कि पं.ठाकुर की गायकी का अनुसरण ही नहीं उनकी नक़ल भी बाद के कई नामचीन गायकों ने की और यश पाया.

आज सुरपेटी पर पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर का गाया रात्रिकालीन राग मालकौंस सुनिये.विलम्बित और द्रुत लय में निबध्द ये बंदिश (पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे) श्रोता को एक अलौकिक स्वर यात्रा करवाती है.
वैसे पण्डितजी की गायकी इतनी सुमधुर है कि इस उनका गायन कभी भी सुनें , आनंद ही देती है लेकिन हो सके तो इस प्रस्तुति को रात्रि के समय की सुनें,आनंद द्विगुणित होगा.

Raag Malkauns - Pa...