Sunday, June 28, 2009

मैं तो साँवरे के संग राची-कौशिकी चक्रवर्ती.


पटियाला घराने की गायकी के अनुगामी पं.अजय चक्रवर्ती की यशस्वी सुर-पुत्री कौशिकी
के गले में अपने पिता-गुरू की सारी ख़ूबियाँ मौजूद हैं.वे जब जो गा रहीं है तो अपनी एक विशिष्ट छाप छोड़ देतीं हैं.अल्पायु में ही उन्हें नाम,शोहरत और प्रतिष्ठित मंच मिलने लग गए थे. आज सुर-पेटी पर राग मिश्र तिलंग में निबध्द भजन कौशिकी के स्वर में सुरभित हो रहा है. यह मीरा-भजन न जाने कितनी बार कितनी ही गायिकाओं से आपने सुना होगा लेकिन यहाँ कौशिकी के स्वरों का अंदाज़ ही कुछ निराला है.क्लासिकल म्युज़िक से जुड़े होने के बाद भी जब वे भजन गा रहीं हैं तो शब्द की शुध्दता को क़ायम रख रहीं हैं.जहाँ भी उन्होंने किसी पंक्ति को एक ख़ास घुमाव दिया है वहाँ वह लाज़मी सा लगता है. आइये कौशिकी को सुनें

Kaushiki Chakrabar...

Thursday, June 25, 2009

संगीतकार मदनमोहन - 85वाँ जन्मदिन-दो दुर्लभ गीत



अज़ीम संगीतकार मदनमोहन आज होते तो पूरे ८५ बरस के होते। ये कहने में कोई झिझक नहीं कि तमाम ख़राबियों के बाद यदि क़ायनात में कुछ सुरीला बचा है तो वह मदनमोहन जैसे गुणी संगीतकारों की बदौलत। नाक़ामयाब फ़िल्मों का क़ामयाब संगीत रचने वाले मदनमोहन के लिए आज संगीतप्रेमियों में जिस तरह जिज्ञासा, मोहब्बत और जुनून है ; काश ! वह उनके होते हुए होता तो शायद मदनजी १०-२० बरस और जी जाते। ख़ैर अब तो हम सब उनके न होने का अफ़सोस ही कर सकते हैं।

आज २५ जून मदनमोहनजी का जन्मदिन है। उनके बेटे संजीव कोहली मुंबई में रहते हैं और यशराज फ़िल्म्स में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं। हर बरस वे अपने मरहूम पिता का जन्मदिन किसी न किसी रचनात्मक और सुरीले अंदाज़ में ज़रूर मनाते हैं और मदनजी के मुरीदों को मुंबई आमंत्रित करते हैं। अभी दो दिन पहले संजीवजी का लिफ़ाफ़ा मेरे हाथों में था। जब उसे खोला तो एक पत्र के साथ ख़ूबसूरती से डिज़ाइन किया हुआ एक सीडी भी निकला। "तेरे बग़ैर' शीर्षक के इस सीडी के आमुख में मदनमोहनजी की मोहिनी सूरत नज़र आई। जब सीडी को ध्यान से देखा तो वह वाक़ई किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं थी. सीडी में मदनमोहनजी के संगीतबद्ध ऐसे गीतों की मौजूदगी है जिनकी फ़िल्में किसी न किसी वजह से रिलीज़ न हो सकीं। इस सीडी में लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले, तलत मेहमूद और किशोर कुमार के गाए अनमोल गीत हैं। सबसे ज़्यादा चौंकाते हैं दो गीत । एक रफ़ी साहब का गाया हुआ शीर्षक गीत "कैसे कटेगी ज़िंदगी तेरे बग़ैर-तेरे बग़ैर (राजा मेहंदी अली ख़ॉं-१९६५)' दूसरा गीत लताजी ने गाया है बोले हैं "खिले कमल सी काया (इंदीवर-१९७२) 'दोनों गायक महान क्यों हैं यदि जानना हो तो इन दो गीतों को सुनिये और अगर यह समझना हो कि कोई संगीतकार किसी गीत की घड़ावन कैसे करता है तब भी इन दोनों गीतों सुनिये। इन गीतों को सुनने के बाद आपको ये भी अंदाज़ा हो जाता है कि मदनमोहन के भीतर महज़ एक संगीतकार नहीं एक कवि और शायर भी हर पल ज़िंदा रहा। यही वजह है कि जब आप इन दोनों गीतों को सुनते हैं तो समझ में आता है कि कविता को सुरीली ख़ुशबू कैसे पहनाई जाती है।

"तेरे बग़ैर' में कुल जमा १४ गीत हैं और इसके साथ एक और नज़राना पेश किया गया है। वह है फ़िल्म वीर-ज़ारा के गीतों की रचना प्रक्रिया की बानगी। इस सीडी में मदनमोहनजी आपको गुनगुनाते हुए सुनाई देते हैं और बाद में सुनाई देता है वह ओरिजनल गीत जो वीर-ज़ारा के लिए रेकॉर्ड किया गया। संजीव कोहली ने "तेरे बग़ैर' के प्रकाशन के लिए यश चोपड़ा साहब का ख़ास शुक्रिया अदा किया है। हॉं ये भी बताता चलूँ कि २५ जून के दिन ही संजीव कोहली ने मदनमोहन के नाम से एक वैबसाइट भी जारी कर दी गई है जिस पर इस बेजोड़ संगीतकार की शख़्सियत और संगीत की जानकारी उपलब्ध है.हाँ मदनमोहनजी,कलाकारों और कोहली परिवार के कुछ बहुत प्यारे चित्र भी यहाँ देखे जा सकते हैं.

इसमें कोई शक नहीं कि मदनमोहन हमारी ही दुनिया के इंसान थे लेकिन उनका संगीत न जाने किस लोक से आता था जो सुनने वाले को दीवाना बना देता था। ग़ज़लों को जिस अलहदा अंदाज़ में मदनजी ने कम्पोज़ किया है वह विलक्षण है। आज मदनमोहन के जन्मदिन पर आपको "तेरे बग़ैर' से दो गीत सुनवा रहा हूँ उम्मीद है इन गीतों की शब्द रचना और धुन आज पूरे दिन आपको मदनमोहन की याद दिलाती रहेगी।


Thursday, June 18, 2009

पिनाज़ मसानी की आवाज़ में एक सुन्दर भजन

यूँ उनका नाम ग़ज़ल की दुनिया में ज़्यादा लोकप्रिय है लेकिन आज सुनिये पिनाज़ मसानी की आवाज़ में एक भजन.
सखी भाव में पगा ये भजन गाने वाली पिनाज़ ने किराना घराने के वरिष्ठ संगीत साधक पं.फ़िरोज़ दस्तूर साहब से
बाक़ायदा क्लासिकल मूसीकी की तालीम ली और उन्हें विदूषी मधुरानी फ़ैजाबादी जैसी गुणी गुरू का सान्निध्य भी मिला.
मधुरानीजी ने पिनाज़ मसानी की आवाज़ की घड़ावन को परखते हुए उन्हें ग़ज़ल की ओर आने के लिये मुतास्सिर किया.

सुरपेटी पर आज बहुत दिनों बाद कुछ सुनाने का मन बना .
आइये बातें कम और सुर ज़्यादा का मान रखते हुए
पिनाज़ मसानी को सुनते हैं.